राजा सगर के 60,000 पुत्रों के भस्म होने की कथा

504008927 1033778648892928 1906452544428379673 n

राजा सगर के 60,000 पुत्रों के भस्म होने की कथा रामायण, महाभारत, और पुराणों (विशेषकर भागवत, ब्रह्मांड, वामन आदि) में वर्णित है। यह कथा न केवल ऐतिहासिक गाथा है, बल्कि उसमें गहरे नैतिक और आध्यात्मिक संदेश भी छिपे हैं।

राजा सगर और उनके पुत्रों के भस्म होने की विस्तृत कथा:

1. राजा सगर का यज्ञ और अश्वमेध:

राजा सगर, सूर्यवंश के एक पराक्रमी और धर्मपरायण राजा थे। उनकी दो रानियाँ थीं—केशिनी और सुमति।

सुमति को साठ हजार पुत्र और केशिनी को एक पुत्र – असमंजस प्राप्त हुआ।

सगर ने अपने साम्राज्य को विशाल बनाने के उद्देश्य से एक अश्वमेध यज्ञ आरंभ किया।

यज्ञ के नियम के अनुसार, यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया जो स्वतंत्र रूप से विभिन्न राज्यों से गुजरता है। यदि कोई राज्य उसे रोकता है, तो युद्ध होता है।

2. घोड़े की चोरी और ऋषि कपिल का आश्रम:

यज्ञ का घोड़ा अचानक गायब हो गया।

राजा सगर ने अपने 60,000 पुत्रों को आदेश दिया कि वे घोड़े की खोज करें।

खोजते हुए वे ऋषि कपिल के आश्रम पहुँचे, जो गहन तप में लीन थे।

(ऋषि कपिल विष्णु के अंशावतार माने जाते हैं।)

वहीं उन्हें घोड़ा बैठा हुआ दिखाई दिया, परंतु वह कपिल मुनि के पास ही था।

3. सगरपुत्रों का अभिमान और अपराध:

सगरपुत्र घमंडी और उद्दंड थे। उन्होंने सोचा कि ऋषि कपिल ने घोड़ा चुरा लिया है।

क्रोधित होकर वे कपिल मुनि को अपशब्द कहने लगे और उन्हें उठाने और बाँधने का प्रयास किया।

यह सब तब हो रहा था जब ऋषि ध्यानमग्न थे, और उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया।

4. ऋषि का शाप और पुत्रों का भस्म होना:

जब कपिल मुनि ने आँखें खोलीं और देखा कि उनके तप में विघ्न डाला गया है, तो वे क्रोधित हुए।

उनकी दृष्टि पड़ते ही सगर के सभी 60,000 पुत्र वहीं भस्म हो गए।

यह दिव्य तेज से हुआ, जो उनके तप की शक्ति का परिणाम था।

5. इसके पीछे का गूढ़ संदेश:

यह कथा हमें बताती है कि—

तपस्वियों, ऋषियों और धर्माचार्यों का अपमान घोर पाप है।

अभिमान, चाहे वह किसी भी कुल या सामर्थ्य से क्यों न हो, अंततः विनाश का कारण बनता है।

धैर्य, विनम्रता और विवेक के बिना शक्ति और संख्याबल व्यर्थ हैं।

6. पुनः मुक्ति का मार्ग:

बाद में राजा भगीरथ ने उन भस्म हुए आत्माओं की मुक्ति के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाने की तपस्या की।

जब गंगा का जल उनके अवशेषों पर बहा, तब जाकर उन्हें मोक्ष प्राप्त हुआ।

संक्षेप में श्लोक (भावार्थ सहित):

“कपिलं मुनिमासाद्य चिक्षिपुः कलुषाक्तया।

यथा दग्धास्तदा तस्य संनिधौ सागरात्मजाः॥”

(भावार्थ: जब सगरपुत्रों ने ऋषि कपिल को कलुषित वचनों से क्रोधित किया, तो वे सभी वहीं भस्म हो गए ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright © 2025 All rights reserved Shabd Prabhat | Newsphere by AF themes.