नित नई कोपले निकलेंगी, नित नए फूल मुरझाएंगे

Pankaj Dubey

नित नई कोपले निकलेंगी
नित नए फूल मुरझाएंगे
ये रिमझिम सावन आयेंगे
ये सर्दी गर्मी लाएंगे
जीवन नित नव संघर्षों से उजला काला होगा ही
विरह वेदना का अंतर्मन में आना जाना होगा ही,
तुम ऐसे कोपल, कली बनो
तुम ज्वाला अपनी बिखराओ
कुछ खोया पाया लगा रहे
ऐसे ही जीवन ठगा रहे,
ठग गए अगर जीवन में तो
इसका तुम रोष न हो
कुछ गया अगर तो ऐसा न हो उसका तुमको बोध न हो
बोध रहित जीवन परिवर्तन बोध नहीं होने देगा
गर बोध नहीं जीवन में तुमको, तब अंतर्मन में शोध न होगा
जीवन व्यर्थ हुआ तेरा गर अवरोध नहीं होगा

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