Pankaj Dubey Quotes and Shayri

महाभारत

तुम कतले ग्रस्त हो , तुम कतले आम हो
हमे पाने में तुम बड़े नाकाम हो

मुद्दों किए हैं वायदे तुमने हमसे न बिछड़ने के
वायदे के मामले में तुम बड़े बदनाम हो।

जीवन संघर्ष में विराम होना चाहिए
युद्ध है तो युद्ध अविराम होना चाहिए
व्याकुलता की लहर है मन के अंतरंग में
विराम नहीं तो अल्पविराम होना चाहिए।
भावुक हो जानकर अपने लिबास को
शब्दों की बेड़ियां सभी के पास हो
जब जब मन प्रीत में प्रेम का निचोड़ लें, तब तब विरह का संयोग होना चाहिए
मिले है मिलेंगे और मिलते रहेंगे
विरह वेदना का भी योग होना चाहिए।

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( Pankaj Dubey)

ख़ुद को इतना जो हवा-दार समझ रक्खा है
क्या हमें रेत की दीवार समझ रक्खा है

हम ने किरदार को कपड़ों की तरह पहना है
तुम ने कपड़ों ही को किरदार समझ रक्खा है

मेरी संजीदा तबीअत पे भी शक है सब को
बाज़ लोगों ने तो बीमार समझ रक्खा है

उस को ख़ुद-दारी का क्या पाठ पढ़ाया जाए
भीक को जिस ने पुरूस्कार समझ रक्खा है

तू किसी दिन कहीं बे-मौत न मारा जाए
तू ने यारों को मदद-गार समझ रक्खा है.

इस अधूरी सी जिंदगी का
मुकम्मल सा हिस्सा हो

मेरी अधूरी सी कहानी का
पूरा किस्सा हो

जिसने जीवन जीकर देखा,
मरने की आस उसी को है।

जिसने मधुशाला पी डाली,
अब पानी की प्यास उसी को है।

इस विह्वल मन की गंगा से, सब कुछ उतर गया है अब,

जिसने कुछ ना पाया है, पाने की आस उसी को है।

बहता पानी आंख का आंसू
बह जाएं तो मन का मोती
प्रेम का सोना लुट जाए तो तेरा क्या है?
कौन देव तूं? क्या नियती है?-२
बता तूं कर ही क्या सकता है?
जो घटती है हर मंजर पे
हर घटनाएं
उनकी अपनी अलग दास्तां
सब कहते हैं ये मेरा है तेरा है
और हाथों को जोर से भींचें
रस्सी खींचें लटक रहें हैं
सभी पकड़ कर
अपनी दुनिया अपना रहबर
हरियाली को खा गया बंजर
तभी अचानक बीच जहां से
निकल के आया एक लुटेरा
लूट गया जो सारी दुनिया सारे मोती सारे सोना
मचा रहा तूं पीट के छाती कर के रोना बेबुनियादी शोर
कौन देव तूं
क्या करता है
तेरा क्या है?
बंजर आंखें
बहता सोना I

वक्त सिलसिले वार , इस दरमियां गुजर जाएगा

मैं यहां से जा चुका होऊंगा, जब तक तू खबर पाएगा ।

बातों को बोझ तले और बोझ को बातों तले
दबाना सीख लिया मैंने
दबा हों सबक ए सलिखा तले जिंदगी में
क्या क्या बताऊँ उनको अब कैसी कैसी खुमारी है
अपनी बातों को उनसे छुपाना सीख लिया मैंने भी
राह ए मंजिल तो हर बार मंजिल नही हो सकती
अब मंजिल के साथ साथ राहें भूलना भी सीख लिया मैंने
उंगलियाँ पकड़ के गट्टे और गट्टे से बाजू तक पहुंचने लगते हैं लोग
लोगों से अपने हाथ छुड़ाना सीख लिया मैन भी
बेसबब , बेअसर बड़ा लाचार हूँ मैं
लोगों को तमीज़दार बताना छोड़ दिया मैंने भी

आ जिंदगी उम्र भर खेलते हैं
तू मुझसे खेल , मैं तुझसे

कभी सोचता हूँ कि युद्ध का अनुभव करूँ मैं

कभी सोचता हूँ कि मैं मृत्यु के आँचल से लिपटू फिर सोचता हूँ युद्ध तो आता नही
तो सीखना मैं चाहता हूँ जैसे अभिमन्यु ने सीखा मैं भी करना चाहता हूँ कृष्ण सा
फिर
युद्ध
फिर चाह हो जाती है मेरी भीष्म जैसी मृत्यु हो
जब तक न चाहूँ मृत्यु को मैं वो हाथ बांधे हो खड़ी कोने में जैसे
फिर सत्य को में चाहता हूँ सीख लूँ युधिष्ठिर से फिर गुरु भी एक चाहिए मुझे द्रोणाचार्य सा जो सिखा सके मुझे युद्ध की सारी कलाएँ सारथी फिर कृष्णा सा और पार्थ जैसा शौर्य हो । बाहुबल हो कर्ण सा निज शौर्य मैं गाउँ नही अंत अभिलाषा यही की युद्ध को पाऊँ नही ।।

एक दिन सब ठीक हो जाता है,
बस ठीक होता है सब ख़त्म हो जाता है।

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