भारत की न्यायपालिका में सब कुछ ठीक है…? 🤔

हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट से तीन चौंकाने वाले फैसले आए:
1️⃣ 19 साल की खदीजा शेख को जमानत — जिसने कश्मीर को “भारतीय अधिकृत” और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को “हिंदुत्व आतंकवाद” कहा था।
2️⃣ यमनी नागरिक मो. कासिम अल शिबाह की रिहाई का आदेश।
3️⃣ मुंबई एयरपोर्ट के संवेदनशील हिस्सों से तुर्की की सेलेबी कंपनी को हटाने के फैसले पर रोक।
🔍 इन तीनों में शामिल थे — जस्टिस सोमशेखर सुंदरेशन।
अब ज़रा गौर कीजिए:
ये वही व्यक्ति हैं जो जज बनने से पहले ब्रिटिश NGO ऑक्सफैम के बोर्ड में थे — एक ऐसा NGO जिस पर ‘Deep State’ से फंडिंग पाने के आरोप हैं।
तो सवाल ये उठता है:
❓ एक आम सरकारी कर्मचारी की इतनी गहरी जांच होती है, तो जजों की क्यों नहीं?
❓ क्या कॉलेजियम सिस्टम पूरी तरह पारदर्शी है?
❓ क्या जस्टिस सुंदरेशन की फाइल सरकार ने कई बार रोकी थी, लेकिन कॉलेजियम ने ज़बरदस्ती मंजूरी दी?
और सबसे बड़ा सवाल:
क्या विदेशी ताकतें हमारी न्यायपालिका में भी सेंध लगा रही हैं…?
यह सिर्फ सिस्टम का मामला नहीं, देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ा सवाल है।
आपकी क्या राय है?👇