गाँव अब बूढ़े हो गए हैं,क्योंकि अब बुजुर्ग ने गांव छोड़ दिया | Pankaj Dubey Quotes

गाँव अब बूढ़े हो गए हैं,
क्योंकि अब बुजुर्ग ने गांव छोड़ दिया
पेड़ो ने बचपने को अपना लिया है छोटा कर लिया है उनका कद ताकि कोई तोड़ ले उनके फलों को,
क्योंकि वो बच्चे बड़े हो गए हैं, अब नहीं करते वो बचपन
नए बच्चों को नहीं सिखाई गई ये परंपराएं कि पेड़ो के साथ खेलो, उनके फलों को तोड़ो तुम पत्थरों से,
उनके कंधों पे अभी से बोझ है लाचारी का, जिम्मेदारी का और बिना मतलब की भगति हुई जिंदगी से दौड़ लगाने का ।
अब गांव के खाने में वो स्वाद और वो सुकून नहीं रहा
क्योंकि लोग खाने के लिए कमाते हैं और कमाने के लिए खाते हैं,
लेकिन वो कमाने के चक्कर में खाना भूल गए हैं।
अब गांव ठहरता ही नहीं एक भी पल
क्योंकि अब ठहराव है ही नहीं लोगों में, सुकून के लिए दौड़ जारी है उनकी परन्तु वो जिस दौड़ में शामिल हो गए वो उनकी खुद की दौड़ है नहीं और उनकी सारी प्रतिस्पर्धाएं खुद से ही है।
गांव अब नहीं हंसता क्योंकि अब वहां के लोगों ने महत्वाकांक्षाओं का रोना शुरू कर दिया है।
जिस पर के नीचे बैठ कर रो दिया इन सब ने वो सभी वृक्ष सूख गए उनकी वेदनाओं को सुनकर।
अब सभी रीति रिवाज, मंगल ध्वनियां, शहनाइयां और बुजुर्गों की सलाहों को लोगों ने समाज से बहिष्कृत कर दिया है।
समाज ने बुजुर्गों को नजरअंदाज कर दिया और बुजुर्गों ने अब भी थामी हुई है समझ की सभी रीतियों को।
गांव पेड़ो, बुजुर्गों और उन शरारती बच्चों के बिना अकेला पड़ गया है क्योंकि अब ये चारों अलग हो चुके हैं इनकी आपस में भी बनती।
गांव इसलिए बुध भी हुआ है क्योंकि वो उम्रदराज हो गया है वो इसलिए बुध हो गया है क्योंकि वो अब अकेला है, दुखी है और जिम्मेदारियों को अकेले धो रहा है।
बचालो इस गांव को, बुजुर्गों को, शरारती बच्चों को और सबसे पहले इन बूढ़े हो गए पेड़ो को